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आबादी ने ही खोला खुशहाली का रास्ता

Media Manish
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शिक्षा और स्वास्थ्य पर आधारित जनसंख्या नीति ने तैयार की भारतीय युवाओं की वह पीढ़ी, जो साबित हो रही है आर्थिक तरक्की की सूत्रधार

70′ के दशक के मध्य में देश में बढ़ती आबादी को लेकर भारत सरकार इस कदर चिंतित थी कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम का क्रियान्वयन किसी छापामार कार्रवाई की तरह हो रहा था। यह वह दौर था, जब पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के दल गाँव-गाँव जाकर ‘नसबंदी अभियान’ चला रहे थे और भयभीत ग्रामीण इससे बचने के लिए गन्ने के खेतों और ऊँचे पेड़ों पर छिपे रहते थे। परिवार नियोजन के सरकारी लक्ष्य को पूरा करवाने का यह दबाव स्कूली शिक्षकों पर भी था, जो विद्यार्थियों के पिताओं को बंध्याकरण के लिए बाध्य करते थे। आतंक में परिवर्तित हुए इस अभियान ने जनाक्रोश को वह विस्फोटक स्वरूप दिया, जो न केवल इस प्रक्रिया, बल्कि तत्कालीन सत्ता केंद्र को भी ध्वस्त कर देने वाला साबित हुआ।

आज 2010 में लगभग 1.5 अरब आबादी के साथ भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इसे श्राप की जगह वरदान के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय युवा देश और दुनिया के लिए उत्पादकता की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं और वैश्विक कंपनियां इन्हें ‘श्रेष्ठतम मानव संसाधन’ की संज्ञा दे चुकी हैं। समग्र रूप में देखा जाए तो, जिसको लेकर हर सार्वजनिक मंच पर चिंता जताई जा रही थी, आज वही आबादी भारत का संकट नहीं, ‘संकटमोचक’ साबित हो रही है।

लगभग तीस सालों में आया यह बदलाव काफी हद तक उस परिवर्तित जनसंख्या नीति पर निर्भर करता है, जिसमें आतंकित कर देने की हद तक छेड़े गए नसबंदी अभियान की जगह स्त्री शिक्षा और स्वास्थ्य पर दबाव बनाया गया। इस नीति ने 1960 की तुलना में जनसंख्या वृद्धि को 4 प्रतिशत से 1.7 प्रतिशत के स्तर पर ला दिया। अपने दीर्घकालीन परिणामों में यह नीति न केवल आबादी के बोझ से चरमराती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को राहत देने वाली, बल्कि नई पीढ़ी को शैक्षिक स्तर पर उत्कृष्ट और स्वस्थ बनाने वाली साबित हुई।
प्रतिभाशाली युवाओं की नई जमात भारत को विश्व का सबसे बड़ा मानव संसाधन निर्यातक और रोजगार आयातक, दोनों ही बना रही है। यह विश्व इतिहास का पहला उदाहरण है जहाँ ब्रेन ड्रेन बदल गया है जॉब्स एंड इंटरनेशनल करेंसी इनफ्लो में। उम्मीद है कि अपनी युवा पीढ़ी के सहारे भारत इस दशक में अंतरराष्ट्रीय सेवा कारोबार का 37 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त कर लेगा, जहाँ पूँजी होगी सिर्फ प्रतिभा।

मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित हुई यह आबादी न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की बढ़त का कारक बन सकती है। आज भारत में लगभग आधी आबादी 25 साल के आयुवर्ग से संबद्ध है। यह भारत को इसकी निकटतम प्रतिद्वंदी अर्थव्यवस्था चीन पर बढ़त दे सकती है, जहाँ एक बच्चे की नीति के कारण बुढ़ाती हुई जनसंख्या वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर देगी। अब भारत जनसंख्या के लाभदायक चरण में पहुँच रहा है जबकि चीन इस दौर से बाहर हो रहा है। जनसंख्या का लाभदायक चरण 20 से 30 वर्ष के आयुवर्ग में गिना जाता है, जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा कामकाजी होता है। आश्रितों की संख्या में कमी होने की वजह से जनसंख्या का यह चरण अर्थव्यवस्था की वृद्धि में सहायक होता है। भारत में यह स्थिति 2045 तक बनी रहने की उम्मीद है और इसके बाद भी अर्थव्यवस्था में गिरावट नहीं आएगी, बल्कि यह स्थायी और संतुलित आबादी के कारण लाभजनक स्थिति में कायम रहेगी।

इस रफ्तार को कायम रखने का एक ही मूलमंत्र है और वह है शिक्षा। शिक्षा बेहतरीन अर्थव्यवस्था और नियंत्रित आबादी की कुंजी है। भारत अपनी युवा आबादी से लाभ उठा सकता है अथवा नहीं, यह आर्थिक विकास, समानुपातिक सामाजिक विकास और शिक्षा के अंर्तसंबंध पर निर्भर करेगा!

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