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तकनीक का जहर है ई-वेस्ट

Media Manish
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ई-वेस्ट का अर्थ है ऐसा कबाड़ जिसमें इलेक्ट्रानिक सर्किट बोर्ड मौजूद हो। सभी किस्म के ई-वेस्ट में सर्वाधिक विषैला कचरा माना गया है कंप्यूटर का

सस्ती तकनीक ने आज इलेक्ट्रानिक उत्पादों को सर्वसुलभ कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही एक बहुत बड़ी समस्या सामने आई है और वह है ‘ई-वेस्ट की। ई-वेस्ट से तात्पर्य है कबाड़ घोषित किए गए इलेक्ट्रानिक उत्पाद। जैसे-जैसे नई-नई तकनीक सामने आती जाती हैं, पुरानी तकनीक के इलेक्ट्रानिक उत्पाद हटा दिए जाते हैं या इन्हें अपग्रेड कर दिया जाता है। दोनों ही परिस्थितियों में इलेक्ट्रानिक कबाड़ उत्पन्न होता है, जो सही ढंग से निस्तारण न किए जाने पर काफी विषैला सिद्ध होता है।

शाब्दिक रूप में देखा जाए तो ई-वेस्ट का अर्थ है ऐसा कबाड़ जिसमें इलेक्ट्रानिक सर्किट बोर्ड मौजूद हो। ई-वेस्ट टीवी, फ्रिज, मोबाइल फोन, कंप्यूटर, स्टीरियो से लेकर इलेक्ट्रानिक खिलौनों की विशाल श्रंखला तक फैला हुआ है। भारत में अभी ई-वेस्ट की मात्रा कुल उत्पादित कचरे का मात्र एक प्रतिशत है, लेकिन यह कोई खुश होने की वजह नहीं है। कारण यह है कि विकसित देश भारत और ऐसे ही अन्य एशियाई देशों में अपना ई-वेस्ट भेज देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अपना देश एक बहुत ही जहरीले कबाड़ का अड्डï बनता जा रहा है और अगर समय रहते इससे निपटने के उपाय नहीं किए गए तो विकराल समस्या खड़ी हो जाएगी।

ई-वेस्ट के रूप में दो किस्मों का कबाड़ भारत में लाया जाता है। पहला वह, जो टूट-फूट के रूप में है और दूसरा वह, जो थोड़ी सी रिपेयरिंग के बाद दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। पहली किस्म के कबाड़ से काम की चीजें अलग कर ली जाती हैं और शेष को भट्टियों में झोंक दिया जाता है। दूसरी किस्म का कबाड़ उन सस्ते कंप्यूटरों के रूप में आता है जिन्हें हम बहुत सस्ते दामों पर सेकेंड में बिकते हुए देख सकते हैं। यह भी तीन चार साल में कूड़ा हो जाते हैं, वजह पुरानी तकनीक हो या पुर्जों का लगातार खराब होते जाना। अंत में इनकी भी गति टूटफूट वाले ई-वेस्ट की तरह ही होती है।

आखिर ई-वेस्ट इतना अधिक खतरनाक क्यों माना जा रहा है? जवाब है कि इसके निस्तारण में विषैली गैसें और हजारों किस्म के नुकसानदेह रसायनों का निकास होता है। इन सभी किस्म के ई-वेस्ट में सर्वाधिक विषैला कचरा कंप्यूटर का माना गया है। जहां पर ई-वेस्ट को जलाया-गलाया नहीं जाता, वहां पर इसको जमीन में गाड़ दिया जाता है। यहां पर इस कचरे से धीरे-धीरे रिसने वाले प्रदूषक तत्व जमीन की उत्पादकता को कम करने के साथ ही भूगर्भ जल भी दूषित कर देते हैं। ई-वेस्ट के धुंए से डायाक्सिन जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं और इससे सिलिकॉसिस, अस्थमा तथा कई बार हवा में लेड की अधिकता के कारण मौत तक हो जाती है।

अब जरा इस आंकड़े पर नजर डालो। एशिया में प्रतिवर्ष अमेरिका से 102 लाख से भी अधिक पुराने कंप्यूटर आयात किए जाते हैं। अगर इन्हें एक साथ रखकर ढेरी बनाई जाए तो यह एक वर्ग एकड़ जगह को घेर लेंगे और इस ढेरी की ऊंचाई होगी लगभग 674 फीट।

भारत की बात करें तो यहाँ आयात किए सस्ते कंप्यूटरों के अलावा हर साल लगभग पन्द्रह लाख अतिरिक्त कंप्यूटर कबाड़ हो जाते हैं। अब जरा इसी में हर छह महीने में बदले जाते मोबाइल फोन, फेंके जाते इलेक्ट्रानिक खिलौने तथा बैटरियां और ऐसे ही ढेर सारे इलेक्ट्रानिक उत्पादों को जोडऩा शुरू करो। थक गए न, पर्यावरण वैज्ञानिक भी इस बात का अंदाज लगाते-लगाते थक गए हैं कि आखिर इस जहर से मुक्ति कैसे मिलेगी।

ई-वेस्ट को अगर ठीक से निस्तारित किया जाए तो यह द्वितीयक उत्पाद निर्माण में काम आ सकता है, लेकिन यह एक लंबी और गैर लाभदायक प्रक्रिया होने के कारण कोई भी इसका सिरदर्द नहीं लेना चाहता। एक दूसरा सरल उपाय यह है कि इलेक्ट्रानिक उत्पादों को महज शौक के लिए बार-बार बदलने की बजाय उपयोग के लिए खरीदना चाहिए। इनमें छोटी-मोटी खराबी हो तो फेंकने की जगह सुधरवा लेना चाहिए। इसके साथ ही वैज्ञानिक ऐसे तत्वों के विकास में जुटे हुए हैं जिससे ई-वेस्ट को पूरी तरह और सुरक्षित ढंग से रिसाइकिल किया जा सके। तब तक तो सावधानी ही इससे होने वाले नुकसान का सबसे बड़ा बचाव साबित होगी।

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