Menu
blogid : 70 postid : 616947

पहिए हमारी दुनिया के

Media Manish
Media Manish
  • 17 Posts
  • 41 Comments

इसी शहर में अनगिनत लोग अलग-अलग रूपों में हमारे आसपास रहते हैं, जोकि हमारे आड़े वक्त में या कभी-कभी रोज ही हमारी मदद करते हैं। कभी सोचा है कि बदले में हम उन्हें क्या देते हैं?

सुबह-सुबह पिताजी को लॉन में बेचैनी के साथ टहलते देखा। मैं तुरंत समझ गया, पेपर नहीं आया होगा। मैंने कहा, ”पिताजी! इतनी भी क्या बेसब्री, दिन भर तो न्यूज चैनल्स पर न्यूज चलती रहती है।” वे बोले, ”वो तो सब ठीक है, लेकिन अखबार की बात ही कुछ और है। एक दिन भी पेपर वाले ने नागा किया या लेट हो गया और पेपर पढऩे को नहीं मिला तो सारा दिन कुछ कमी सी लगती है।” मैंने तुरंत कहा, ”अरे तो उस पेपर वाले को बोल देंगे न, क्या नाम है उसका? नाम…..?” ख्याल आया, ”अरे वो तो इतनी सुबह पेपर डालकर जाता है, नाम तो दूर मैंने उसकी सूरत भी नहीं ढंग से देखी!”

बात तो सच है। दोपहर में सोचने बैठा कि हमारी दिनचर्या में पेपर वाले भैया जैसे कितने ही लोग शामिल हंै? काम वाली बाई ही तीन-चार दिन न आये, तो इस बात को सोच कर ही घर वालों के हाथ-पाँव फूल जाते हैं। धोबी समय पर कपड़े धोकर न लाये। उसी तरह दूध वाले भैया, सब्जी वाला, स्कूल का ऑटो वाला, प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन और हर महीने हमारे ऊँचे-ऊँचे अपार्टमेंट की चौथी मंजिल तक हाँफते-हाँफते गैस का सिलेण्डर लाने वाले भैया या केबल वाला। इन सारे अनगिनत लोगों में से किसी एक का भी नाम या गाँव हमें पता होता है? गर्मी, सर्दी, बरसात; किसी भी मौसम में मुँह अंधेरे हमें दुनिया भर की खबरें पहुँचाने वाले, पेपर वाले के बारे में हमें थोड़ी सी भी जानकारी है। कड़कड़ाती धूप में हाँफते हुए चौथी मंजिल तक गैस का सिलेण्डर पहुँचाने वाले को क्या हमने कभी पानी के लिए भी पूछा है?

रात को जब हम निश्चिन्त होकर सो रहे होते हैं, तब हमारी रखवाली करता है चौकीदार, जिसको हम एक मामूली सी रकम देकर सोचते हैं, हमारा कर्तव्य पूरा हो गया। क्या कभी सोचा है, अगर सफाई कर्मचारी 2-3 दिन भी हमारी गली-मोहल्ले का कचरा उठाने न आये तो क्या होगा। घर के आसपास कोई जानवर मरा पड़ा हो तो उसकी बदबू से हमारी नाक में दम हो जाता है। ऐसे में क्या सफाई कर्मचारी की याद नहीं आती? बच्चों को जिम्मेदारी से समय पर स्कूल पहुँचाने वाले ऑटो चालक यदि परीक्षा वाले दिन छुट्टïी कर जाएं तो? हम बहुत गुस्सा होते हैं, कोसते हैं, क्योंकि हम यह भूल जाते हैं, कि वे सब भी हमारे जैसे ही हैं, इंसान हैं, उनका भी परिवार है, सुख-दु:ख है, वार-त्योहार है।

ऐसे अनगिनत लोग अलग-अलग रूपों में हमारे आसपास रहते हैं, जोकि हमारे आड़े वक्त में या कभी-कभी रोज ही हमारी मदद करते हैं। लेकिन बदले में हम उन्हें क्या देते हैं? लेट आने पर झिड़कियां, छुट्टïी करने पर पगार काटना, दीवाली पर हमें पसंद न आने वाली बासी मिठाई। हम बड़े-बड़े शॉपिंग माल में जाकर महंगा-महंगा सामान खरीदते हैं, एक पैसे का मोलभाव नहीं करते, लेकिन सब्जी वाले से, रिक्शे वाले से, 1-1, 2-2 रुपये के लिए चिकचिक करते हैं।

कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, यदि वह ईमानदारी से किया जाए। हम अपने आसपास के इन छोटे-छोटे काम करने वाले भैयाओं, बाईयों की एक जरा सी गलती सहन नहीं करते, जबकि हमारे देश के बड़े-बड़े नेता, देश के कर्णधार जो करोड़ों का घोटाला करके देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं, उनका कुछ नहीं कर सकते। छोटा काम करने वाले इन बड़े व्यक्तियों के लिए मन में संवेदना जगाइए। कभी इनके परिवार का हाल पूछकर देखिए, उनसे भी आदर से पेश आइए। यदि हम उन्हें पैसा दे रहे हैं तो वो भी हमें श्रम दे रहे हैं। इनको सिर्फ पैसों से नहीं संवेदनाओं से अपना बनायें। ऐसे अनगिनत लोग हमारे जीवन का हिस्सा हैं, जिनका काम दिखता नहीं किन्तु जिनके बिना हमारा भी काम आगे बढ़ता नहीं!।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to TARUN SHUKLACancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh